Saturday, July 16, 2011

चश्मेबद्दूर

चश्मेबद्दूर

मैने सोंचा
तेरी सुरमई आँखो का
थोड़ा सा कजरा चुराकर
इस चाँद को लगा दूं
बहुत घमंड है इसे
अपनी सुंदरता पर..
ताकि इसे किसी की नज़र ना लगे
पर कैसे छिपा रखूं
तुझे अपनी और जमाने की नज़र से.

Wednesday, July 13, 2011

ओ लाजवंती !

क्यूँ है तेरा ये नाम
ओ री! लाजवंती
शर्मो-हया की प्रतिमूर्ति

किसने चाहा है
तुझे इतना,
और क्यूँ तू..
बस स्पर्श से ही
इतना शरमाती.

क्यों न ,
औरों की तरह
संग हवा के
इतलाती.. इतराती.

ज़रा बता तो..
किस प्रीतम के
अहसास से है
तुझे इतनी.. लाज आती.

१२.०५.१९९८

Monday, July 11, 2011

मेरी कविता(१)

ईश्वर

मैने देखा है
ईश्वर को,
हाँ.. उसी का एक रूप
सागर तट पर
मचलते हुए
चलते हुए
रेत के घरौदे बनाते हुए
फूल पत्तो से सजाते हुए
और फिर..
अपने पैरों से तोड़ कर
इठलाते हुए, हंसते हुए
या फिर..
उसे क्रूर लहरों को
सौंप कर जाते हुए.