Sunday, January 22, 2012

जिंदगी


१.
हैं कुछ सवाल
मन में,
रहते हैं
उमड़ते – घुमड़ते
कभी – कभी
छलक आते हैं
आंसू बनकर
आँखों के कोरों पर
और कभी
पसीने की बूंदो में
चमक उठते हैं
मेरी पेशानी पर..
२.
क्षितिज पर
जमीन-आसमां
क्यूँ मिलते नहीं हैं ?
क्यूँ सपनों को
बादलों से पंख होते नहीं हैं?
क्यूँ हर नदी
सागर से जाकर मिलती है?
क्यूँ ये जिंदगी
बड़े-बड़ों से भी
अकेले नहीं संभलती है?
क्यूँ जन्म लेता हूँ,
मरता हूँ बार – बार
तुझसे ही बिछुड कर,
तुझसे ही मिलने को ??

Copyright@संतोष कुमार ‘सिद्धार्थ’, २०१२ 

Sunday, January 8, 2012

अन्ना का संघर्ष !


कैसे जुटेंगे ?
कैसे साथ देंगे ??
लाखों लोग
अन्ना के आंदोलन में
अन्ना के अनशन में
भ्रष्टाचार मिटाने को

अब भी
जुटे रहतें है
करोड़ों जन
दिन – रात , चौबीसों घंटे
बुझाने को
पेट की आग,
जुटाने को
दो जून रोटी
और मुट्ठी भर अन्न !

Copyright@संतोष कुमार ''सिद्धार्थ'', २०१२