Friday, April 13, 2012

मिलना ..मेरा - तुम्हारा

जब कभी भी
मेरा  चेहरा
और 
तेरा चेहरा
करीब आते हैं
एक - दूसरे के
और खो देते हैं
कुछ यूँ घूम-मिल कर
अपनी-अपनी पहचान
इस जहाँ में
कहीं न कहीं 
सुबह होती है
शाम होती है
फुहारे पड़ती हैं
खुशबू उडती है
ये धरती
सूरज, चाँद सितारे सभी
सलाम कर रहे होते हैं
अपनी-अपनी अदा से
मुझे और तुझे
और जज्ब कर रहे होते हैं
हमारे अनमोल और अद्भुत 
मिलन के जादू को !


Copyright@संतोष कुमार 'सिद्धार्थ' , २०१२ 


9 comments:

  1. प्रेम मिलन यानि आध्यात्म का अभिनव जादू

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  2. sunder baat ....
    dhartii aur sooraj mile to din ....
    bichhade to raat .....

    sunder rachna ....shubhkamnayen ....!!

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  3. Replies
    1. शुक्रिया इमरान जी !!

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  4. मिलन का जादू अनमोल और अद्भुत ही होता है ...

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  5. सुन्दर कविता..!!
    कलमदान

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  6. वाह.........बहुत सुंदर भाव...........

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